मौत के तांडव में भी
जीवन को होना चाहिये
सोच हो शारीर तब भी
मन तो कोमल चाहिये ।
स्वार्थ के माहौल में भी
निस्वार्थ तन मन चाहिये
तेरे मन में मेरे मन में
इक आस दर्पण चाहिये ।
इस आस के साथ थोडा
कर्म होना चाहिये
तब ही डलेगी नीव
मन में स्वप्न होना चाहिये ।
एक एक पग धरके बनेगी
राह अपने सु-राज की
इस वक्त अब संसार को
गाँधी का दर्शन चाहिये ।
16 टिप्पणियां:
कितनी सुंदर कविता लिखी है आपने दर्शन के लिए ...
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
इक आस दर्पण चाहिये ।
इस आस के साथ थोडा
कर्म होना चाहिये
तब ही डलेगी नीव
मन में स्वप्न होना चाहिये ।
सही कहा आपने सुंदर रचना
कविता के मध्यम से आपने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर दी. यही तो अद्वानटेज है कविता की क्षमता रखने का.. बड़ी सुंदर अभिव्यक्ति रही. आभार.
स्वार्थ के माहौल में भी
निस्वार्थ तन मन चाहिये
तेरे मन में मेरे मन में
इक आस दर्पण चाहिये ........
बहुत खूब
कर्म होना चाहिये
तब ही डलेगी नीव
मन में स्वप्न होना चाहिये
अति सुन्दर बधाई
बड़ी सामयिक और सुंदर कविता है !
सुन्दर कविता मय गुहार जी!
ek behtareen drishti ..........
बहुत बढिया रचना है।
बापू की आज ज्यादा ज़रूरत है।
सही कहा....गांधी का दर्शन चाहिए।
आज सभी चाहते है, लेकिन जब कोई बम पर बम मारे, तो क्या हम गांधी जी के कहे अनुसार, उन्हे फ़ूल माला पहनाऎ, या फ़िर उन के लिये जो अपने बचे है उन्हे भी मरने के लिये पेश कर दे....
राम ने ओर कृषणा भगवान ने जो उपदेश दिया क्या उसे भुल जाये???
चाहिये तो सभी को गांधी दर्शन लेकिन किस कीमत पर????
धन्यवाद
स्वार्थ के माहौल में भी
निस्वार्थ तन मन चाहिये
तेरे मन में मेरे मन में
इक आस दर्पण चाहिये ।
बहुत सुंदर भाव और पूरी की पूरी रचना....बधाई आपको...
नीरज
आपका प्रयास सराहनीय है...आप अमेरिका से हमें यह बता सकती हैं कि वहां का आम जनमानस क्या सोचता है भारत से जुड़े मुद्दों पर...?
इस आस के साथ थोडा
कर्म होना चाहिये
तब ही डलेगी नीव
मन में स्वप्न होना चाहिये ।
... प्रसंशनीय व प्रभावशाली रचना है।
स्वार्थ के माहौल में भी
निस्वार्थ तन मन चाहिये !
Bahut sunder rachna hai!
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