गुरुवार, 24 जुलाई 2008

सावन

बरस बरस बरस बरस
बरसो अब बदरा
तरस तरस तरस तरस
तरस गयो जियरा


जरत जरत जरत जरत
जरत रही धरती
तपत तपत तपत तपत
रही सिर्फ तपती
बाट तेरी देख देख
आंख गई पथरा
आ जाओ छा जाओ
बहुत भयो नखरा । बरस बरस ........


घनन घनन घनन घनन
घनन मेघ गरजे
सनन सनन सनन सनन
सनन पवन लरजे
चमक चमक चमक चमक
चमकती बिजुरिया
टपक टपक टपक टपक
बूंदन का सेहरा । बरस बरस ....

बूंदन की धार भई
धार भयो मूसल
धरती के कण कण में
जाय बसेगो जल
पीहू पीहू पीहू पीहू
बोलते पपीहा
छमक छमक छमक छमक
नाच उठे मोरा । बरस बरस.....

हरित हरित हरित हरित
हरित भई धरती
कण कण में जीवन को
पाल रही धरती
परस परस परस परस
परस गयो पियरा
हरस हरस हरस हरस
हरस गयो हियरा

चित्र गूगल से साभार।

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन बरखा बहार गीत....वाह!! बधाई!

आज कल नियमितता में विघ्न क्यूँ है-सब कुछ ठीक ठाक तो है?

शुभकामनाऐं.

डा. अमर कुमार ने कहा…

पढ़ते पढ़ते यदि कोई गुनगुनाने को बाध्य हो जाय,
तो आपकी रचना श्रेष्ठ गीतरचना ही है । मेरे साथ तो यही हुआ ।
बस, गुनगुना रहा हूँ

Prabhakar Pandey ने कहा…

सादर नमस्कार, सर्वप्रथम इस सुंदरतम गीत के लिए साधुवाद।
आप जैसे बड़े, विदुषी की टिप्पणी हम छोटों का सदा उत्साहवर्धन करती रहती है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका वात्सल्य, स्नेह सदा मिलता रहेगा।

Seema Garg ने कहा…

ये गीत सुन कर क्या बदल बरस ही न पड़ेंगे !

नेपाल हिन्दी सहित्य परिषद ने कहा…

मन भिगो गया यह गीत । बहुत सुन्दर

बालकिशन ने कहा…

बहुत ही सुंदर और उम्दा रचना.
बधाई
डाक्टर साब कि बात से सहमत हूँ..

Asha Joglekar ने कहा…

Aap sabko anekanek dhanyawad.. Sameer ji sab theek hai sirf chotisi poti ke pas aaye hain to samay bas aise hi nikal jata hai. Thanks. itane apanepan se aapne poocha.

ARVIND KUMAR SINGH ने कहा…

asha ji
yah kavita rag malhar jaisi hai.
apko bahut badhai.
arvind kumar singh

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

शब्द शब्द सब सरस सरस
हे मेघ अरे अब बरस बरस
बहुत सुंदर बधाई