मंगलवार, 13 मई 2008

हादसे

चीन में भूकंप से १२ से १५ हजार आदमी मर गये ये खबर अभी जेहन में खलबली मचा ही रही थी कि जयपुर के सात धमाकों की खबर सुनी । क्यूं हो रहा है ये सब, कभी प्रकृति तो कभी आदमी हमारी जान के पीछे पडे हैं । प्रकृति के प्रकोप को तो हम रोक नही सकते पर क्या आतन्कवादी हमलों के खिलाफ हम कुछ भी नही कर सकते ? हर बार हादसा होने पर ही थोडी बहुत लीपा पोती करते हुए हम नजर आते हैं । क्यूं नही हमारी पुलिस, जनता, और सरकारी यंत्रणा कम से कम हर राज्य के राजधानियों में और महत्वपूर्ण संवेदनशील जगहों में सचेत रह सकती । और तारीख विशेषों पर होने वाले हादसों को देखते हुए तो ऐसा लगता हैं कि इन विशेष अवसरों पर तो हम चौकन्ने रह ही सकते हैं ।





बाबू लोगों को ६ टे वेतन आयोग के तहत ३ गुना तनखाह बढाने की बजाय या संसद सदस्यों का अलॉटमेन्ट बढाने की बजाय यह ज्यादा जरूरी है ऐसा हमारी सरकार को क्यूं नही लगता । विशेष सुरक्षा दस्तें इस के लिये क्यूं नही बनाये जा सकते ? जनता की सुरक्षा की जो सरकार चिंता नही करती उसकी हाथों में देश कितना सुरक्षित है । अब जब भी वोट मांगने नेता लोग आयें तो यह सवाल आम आदमी को और खास कर मीडिया को उठाना चाहिये क्यूंकि अगर ये एसा ही चलता रहा तो क्या कल हादसे का शिकार हम नही हो सकते ।
हमारे टी वी चेनल और अखबारों के पास तो सिनेमा और क्रिकेट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं ।
खेलों को खेल जितना ही महत्व दो और मनोरंजन को मनोरंजन जितना । हमारे जीवन से जुडे मुद्दों को उठाना क्या समाचार माध्यमों का काम नही है । महंगाई से मार खाती जनता के हित में सरकार को कटघरे में क्यूं नही खडा करते ये टी वी वाले, करते भी हैं तो सब को बुला कर हो हल्ला मचाने देते हैं और बिना किसी निष्कर्ष के विवाद खत्म हो जाता है । मुझे लगता है हम सबको थोडा ज्यादा जिम्मेवार होना पडेगा नहीं तो इस हादसे के बाद भी थोडा बहुत रो धो कर हम अगले हादसे तक अपने में मशगुल हो जायेंगे ।

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सहमत हूँ. जागरुक एवं सार्थक कदमों की इस दिशा त्वरित दरकार है. मन दुखी है यह सब देखकर एक के बाद एक.

रंजू भाटिया ने कहा…

सही कहा आपने आशा जी .जिस वक्त यह सब होता है तब हम विचलित हो जाते हैं फ़िर वही सब चल पड़ता है ..

mamta ने कहा…

आशा जी यही सब तो होता है। कुछ दिन तो लोग चौकन्ना रहते है फ़िर वापिस जिंदगी उसी ढर्रे पर चलने लगती है।

अजित वडनेरकर ने कहा…

आम लोगों की जागरूकता ही ऐसे हादसों से बचा सकती है।

डॉ० अनिल चड्डा ने कहा…

सही है । परन्तु जहाँ तक आतंकवादी गतिविधियों का सवाल है, उससे तोमैं सहमत हूँ कि हमें चौकन्ना रहना आवश्यक है, परन्तु प्रकृति के प्रकोप का क्या करें ? यह तो बाद में ही पता चलता है ।

pallavi trivedi ने कहा…

सहमत हूँ आपकी बात से...पता नहीं क्यों हम खुद को संवेदनशील कहते हैं?

समयचक्र ने कहा…

आपका चिंतन उचित है