मंगलवार, 13 सितंबर 2022

Boond

      Samay ki dhara bahati  hai  

Nirantar abadhit.

Main to usability ek choosing boond

Jo ho jayegi jalashay men samarpit.

Ya dhara me awashoshit.

Nahi janati kya hai niyati 

Par achcha lagata hai

 Samay ki dhara men is boond Roop me

Nirantar behana.

  


2 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

बूँद
समय की धारा बहती है, निरंतर अबाधित
मैं तो उसकी एक छोटी सी बूँद,
जो हो जायेगी इस जलाशय में समर्पित।
नहीं जानती, क्या है नियती
पर अच्छा लगता है,
समय की धारा में यूँ
बूँद रूप में बहना।

Asha Joglekar ने कहा…

ये कविता पता नहीं क्यों रोमन फॉन्ट में ही प्रकाशित करनी पड़ी।
अब टिप्पणी तो देवनागरी में कर सकती हूँ तो उसी को टिप्पणी रूप में
प्रकाशित किया है ।