गुज़ारे साथ में जो दिन,
वो दिन कितने सुहाने थे।
फिर हमें छोड कर जाने के
बोलो क्या बहाने थे?
पल , छिन, दिन, महीने, साल
कितने सुख से बीते थे
क्या मुझे ही ये लगता है
तुम्हारे लिये सब रीते थे ?
नहीं ऐसा नहीं होगा
तुम भी तो मुस्कुराते थे
शामको फूलों का गजरा
मेरे लिये ख़ास लाते थे।
जब तुम्हारे देर से आने पर
मैं कुछ रूठ जाती थी,
पीछे से,चुपके वो गजरा
मेरे बालों में सजाते थे।
खट्टे और मीठे साल
हमनें संग गुज़ारे जो
उन्हीं का फल है देखो
आज सामने बेटे लायक़ जो।
सलोनी बहुएँ, ससुर और सास का
जो ख़्याल रखतीं हैं
नाती और नातिनें भी
जो ढेर सा प्यार रखती हैं।
फिर बताओ बात पर किस तुम
यूँ मुझ से रूठे, दूर गये
बस इसी प्रश्न का उत्तर
ढूँढती हूँ रात गये ।
5 टिप्पणियां:
वाह
अच्छी रचना
मनुहार और शिकायत की सुंदर और प्रेममयी रचना
वाह
बधाई
अपनी मनोदशा को प्रश्न के माध्यम से शब्द दिए हैं । बहुत समय बाद आपको पढ़ रही हूँ ।
सब कुछ होते हुए भी कभी कभी ज़िन्दगी उदास होती है ।
संगीता जी आप ब्लॅाग पर आईं और अपना अभिप्राय दिया , बहुत धन्यवाद।
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