बुधवार, 1 अगस्त 2018

जिंदगी


हर पल तो नही पर हर घंटे लेती है इम्तहान,
ये हमारी जिंदगी जो बनाना चाहती है हमें महान।
पर हम साधारण से मानव कोई राम या धर्मराज तो नही
जो सफल हों हर इम्तहान में और तैयार हों अगले के लिये।

हम होते हैं कभी सफल तो कभी असफल और भुगतते हैं परिणाम
अपने ठीक से तैयार न होने का या होने का
कभी भाग्य के साथ देने का कभी न देने का
कभी जिंदगी के हमें रुलाने का कभी हँसाने का।

एक इम्तहान खत्म हुआ नही कि दूसरे की तैयारी
कैसी मुश्किल हमारी कैसी ये लाचारी
दुनिया हँस के कहती है बेचारा या बेचारी
कैसी जिंदगी इसकी काँटों भरी सारी की सारी।

देती है समय हमको काँटा निकाल,पाँव सहलाने का
थोडा बैठ के दिल बहलाने कि हम हो जायें तैयार
अगले काँटे की चुभन के लिये और चुभाने दें काँटे
जिंदगी को, जब तक कि पाँव लहू-लुहान ना हो जायें।


1 टिप्पणी:

mehek ने कहा…

Sundar bhav, sahi kaha zindagi ek ke baad ek imtehan let hi renting hai aur hame agle ke liye taiyyar hina chaihiya. Par yahi zindagi ki khubsurati bhi hai.