रविवार, 19 नवंबर 2017

चलते हीजानाहै।

कितना तो चल चुकी मैं
कितना अभी चलना है।
थक गये हैं पाँव लेकिन
राह बीच न रुकना है।

कहाँ खत्म रास्ता है
कोन सी मंजिल है मेरी
राह चाहे हो कँटीली
या हो फिर चाहे पथरीली
चलते ही जाना है मुझको
कँही ना ठहरना है

खत्म हो गये वे रस्ते
फूल पत्ती घाँस वाले
अब तो राह मरुथली है
पाँव में पड गये हैं छाले।
चलते ही जाना है लेकिन
राह में ना रुकना है।

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