रस, रंग, सुगंध, उमंग भरे
दिन नीके नीके औ निखरे।
कोहरे से धूप छने जैसे
मन आकुल व्याकुल मीलन को
जगे रोम रोम में पुलक कैसे
फूलों पे मंडराते भंवरे
दिन नीके नीके औ निखरे।
खेतों में सोने सी सरसों
उनको आ जाना है परसों
कल का दिन बीतेगा कैसे
पिय की छवि देखत हूँ हर सों
बादल से धवल सुंदर संवरे
दिन नीके नीके औ निखरे।
शिशिर की हुई हलकी सिहरन
कोमल सी धूप खिली आंगन
बजते हवा के घुंगरू छनछन
गोरी के थिरक उठे कंगन
एक लहर उठी शब्दों के परे
दिन नीके नीके औ निखरे।
दुलहन सी
धरा सजी सँवरी
मेहेंदी रचे, केसर की क्यारी
दूल्हे ऋतुराज के स्वागत में
छेडती तान कोयल प्यारी
गायक न्यारे, पंछी, भँवरे,
दिन नीके नीके औ निखरेचित्र गूगल से साभार
11 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.02.2014) को " सर्दी गयी वसंत आया (चर्चा -1515)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
वाह !
मन के तार को दे रही झंकार ..!!
बहुत सुंदर कविता ....!!
ऋतुराज वसंत का बहुत सुन्दर स्वागत !
New post जापानी शैली तांका में माँ सरस्वती की स्तुति !
सियासत “आप” की !
वसंत के रंग और वासंती पवन की उत्कट प्रतीक्षा है अभी तो - वसंतपंचमी पर शुभकामनाएँ !
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : प्रकृति से मानव तक
वसंत हर आगत दिन को और निखारता रहे, शुभकामनायें।
बहुत अच्छी कविता. नीके-नीके पढ़कर अच्छा लगा. हमारी मातृभाषा मैथिली में भी अच्छा को नीक ही कहते हैं.
खूबसूरत कथ्य...
बहुत कोमल अहसास...मन को आह्लादित करता बहुत सुन्दर शब्द चित्र...
कोमल एहसास, मधुर गान सी ... उश्रंखल प्रेम नदी सी ... सुन्दर रचना ... मन को छूती हुई ...
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