चांदनी की झीनी ओढनी
प्रीत की सुमधुर रागिनि
यमुना जैसे मंदाकिनि
शरद की ऋतु सुहावनी
आओ ना गिरिधर।
तज दो ना ये विराग
बसा लो मन में अनुराग
गूंज रहा प्रेम राग
जाग रहा है सुहाग
देखो मुरलीधर।
सखियाँ करे ठिठोली
बोल कर मीठी बोली
चली आई यूँ अकेली
तेरी प्यारी सहेली
ना तरसाओ श्रीधर।
ये मधुऋतु सुहानी
बिन तुम्हारे विरानी
न रूठो राधा रानी
आ गये प्रियकर।
चित्र गूगल से साभार
9 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना |
मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (20-10-2013) के चर्चामंच - 1404 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
sundar bhawon se saji rachna ...
बहुत ही प्यारे भाव पिरोय हैं.
सुंदर रचना !
सखियाँ करे ठिठोली
बोल कर मीठी बोली
चली आई यूँ अकेली
तेरी प्यारी सहेली
ना तरसाओ श्रीधर।
बहुत सुन्दर ...
भावपूर्ण ... चांदनी की झीनी चादर पूर्णिमा के चाँद की चादर पहने प्रिय का आगमन ... मधुर प्रेम की वर्षा ...
बहुत सुंदर रचना.
नई पोस्ट : धन का देवता या रक्षक
प्यारभरी कोमल रचना।
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