मंगल आगमन गजानन को
अब से प्रभु घर में विराजत है।
मणि से नैना और सूंड सरल,
मस्तक पर मुकुट सजावत है।
पाशांकुश, मोदक कर धरि के
फिर वरद हस्त से रिझावत है
गणपति सबके हिय भाये अति
दूब, जवा पुष्प से सजावत है।
आँखन से भक्त को जतन करे
फेरि सूंड के पीर हरावत है।
कानन से करे ऐसो वात
सब विघन को दूर उडावत है।
भगतन के हित व्है दयावान
टूटे दन्त से बैरी गिरावत है.
हमरे अपराध रहे कोटिन,
सब पेट में डारि भुलावत है.
सारि माया मोह के बटै डोरि
कोई बिघनराज जब ध्यावत है.
शरण गये त्यागि कबहु न प्रभु
गणराज सभी को अपनावत है ।
18 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
RECENT POST : समझ में आया बापू .
बहुत सुंदर ... गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें
नमस्कार आपकी यह रचना आज मंगलवार (09-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जय श्री गणेश,
विघ्न विनाशक, प्राणेश..
बहुत सुंदर गणेश चतुर्दशी की शुभकामनायें.....
बहुत सुंदर गणपति - वन्दन .......
बहुत ही सुंदर गणपति वंदना, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सुंदर स्तुति, जय देव....जय देव ...
गणपति महाराज की कृपा दृष्टि सब पर बनी रहे. बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
गणपति महाराज की कृपा दृष्टि सब पर बनी रहे. बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
मधुर और प्रभावशाली वन्दना !
ताई, बहुत सुन्दर गणेश वंदना है !
गणपति की सुन्दर आरती ... गणपति का रूप सामने आ जाता है ... जय हो गणपति बप्पा की ...
सुंदर गणपति वंदना !
bahot achchi lagi......
बहुत सुन्दर गणपति वंदना..
प्रभु कृपा बनी रहे...
सादर
अनु
बहुत ही सुंदर गणपति वंदना, शुभकामनाएं.
देरी से आ सका
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