ओ सिंह , उठो, जवाब दो दुष्मन को ।
त्यजो दुविधा, कि क्या करूं, कैसे करूं ?
वही करो जो करना चाहिये , जो शास्त्र कहते हैं ।
वही करो जो ईश्वर ने कहा है, गुरू ने, संतों ने कहा है ।
वैसे ही करो जो इन परिस्थितियों में उचित है जैसा शास्त्र कहते
हैं ।
मत भूलो कि देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है ।
डरो नही युध्द करो, युध्द अनिवार्यता है जीवन की ।
यह युध्द तुम पर, हम पर लादा जा रहा है । देश के प्रति कर्तव्य
है तुम्हारा कि उठो और युध्द करो ।
आत्मरक्षण अनिवार्यता है । युध्द में जीतोगे तो सत्ता पाओगे और
नाम भी ।
नही तो तुम्हारे मित्र और शत्रु दोनों तुम्हारी निंदा करेंगे,
इतिहास भी तुम्हें माफ नही करेगा ।
तुम्हारे कायरता की गाथा नमूद करेगा ।
महाभारत युध्द में कम विनाश नही हुआ फिर भी तो हम आज संख्या में
बुलंद हैं ।
इस संख्या की लाज रखो । युध्द करो ।
युध्द करो ताकि जनता समझे स्वतंत्रता का महत्व ।
अभी कोई कृष्ण नही आने वाले तुम्हारे लिये, ये जनता ही है तुम्हारे कृष्ण ।
18 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर उम्दा प्रस्तुति ,,,
RECENT POST : जिन्दगी.
बहुत ही सुंदर दृष्टांत दिया आपने महाभारत से, पर हमारे सिंह तो सोये पडे हैं मुंह ही नही खोलते. किससे कहें?
रामराम.
सशक्त सार्थक अभिव्यक्ति आशा जी ....!!
बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति.
विचारणीय ..... अब तो जागें .....
ताई, ये सिंह अब आपकी इस प्यारी भूपाळी से
उठने वाले नहीं है !
उठो पार्थ, गांडीव सम्हालो।
बढ़िया भाव प्रस्तुति
सच है की जब युद्ध अनिवार्य हो तो तन, मन, धन से करना चाहिए ... लाजवाब अभिव्यक्ति ....
आपको स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें ...
उत्तम प्रस्तुति।।।
लाजवाब...बहुत बहुत बधाई...
बस हमारे नेताओं से हाथ पैर खुलवा दो -जिन्हें अब कटे शीश अच्छे लगतें हैं बहादुरशाह जफर तो बन नहीं सकते उनका नाम और डुबो रहें हैं ये गणतंत्री मूषक राज। बेहतरीन रचना हिन्दुस्तान के आवाम की आवाज़।
बहुत सशक्त और सार्थक प्रस्तुति...
सशक्त अभिव्यक्ति ...
बधाई !
बहुत ही सशक्त रचना दीदी . बहुत अच्छा लगा पढ़कर .
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
very nice.
ओ सिंह ,
उठो,
जवाब दो दुश्मन को
वही करो जो करना चाहिये ,
जो शास्त्र कहते हैं
देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है
अब जाग्रत होना परमावश्यक है...
आदरणीया आशा जोगळेकर जी
राष्ट्र भक्ति के आपके जज़्बे को नमन !
याद हो आई ये पंक्तियां -
हमने अभिषेक किया था
जननी का अरि षोणित से,
हमने शृंगार किया था
माता का अरि-मुंडों से,
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
जागे हुये को कैसे जगाया जाए ....सुंदर प्रस्तुति
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