जिसके खयाल ही से रूह काँपती है मेरी,
वही दे रहा है है दस्तक मेरे किवाड पे ।
दीवारों के कान होते हैं कहावत ही है लैकिन
लगता कि उगे कान हैं, आंगन की बाड पे ।
हम नासमझ ही सही, समझदार भी देखें
जिनकी समझ के चर्चे हैं दुष्मन के द्वार पे ।
अपना समझ के जिनको गले से लगा लिया
वही ला रहे हैं खटमल पलंग की निवाड पे ।
बेहतर लिखा था जिसने, वो तो इग्नोर हो गया
ईनाम बट रहे हैं उनके कबाड पे ।
कानून व्यवस्था जो सरकार ना चलाय
गुंडा ये राज,
जायें अब किसके द्वार पे ।
अब तो जाओ चेत, न रहो नींद में लोगों
चूके तो भुने जाओगे चनों की भाड पे ।
11 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर..
अरे वाह ..
नमस्ते आशा जी, आज कल आप एन्डर्सन मे हैं क्या?
बेहतर लिखा था जिसने, वो तो इग्नोर हो गया
ईनाम बट रहे हैं उनके कबाड पे ।
बहुत सुन्दर..
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सलाम है ऐसी कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल को - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Har ek sher shandar.....jai hind
दीवारों के कान होते हैं कहावत ही है लैकिन
लगता कि उगे कान हैं, आंगन की बाड पे ।
YE WALA PYARA SA LAGA :)
खूबसूरत अभिव्यक्ति...
बेहतरीन प्रस्तुति.
वाह...
खट्टी मीठी सी ग़ज़ल.....
सादर
अनु
बेहतर लिखा था जिसने, वो इग्नोर हो गया
ईनाम बट रहे हैं अब उनके कबाड पे ।
हा..हा..हा...हा..
मंगल कामनाएं आपके लिए !
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