देह के
अपने इस प्रांगण में
कितनी
कीं अठखेली पिया रे
मधुघट
भर भर के छलकाये
औ रतनार
हुई अखियाँ रे ।
खन खन
चूडी रही बाजती
छम छम
छम छम पायलिया रे
हाथों
मेहेंदी पांव महावर
काजल से
काली अंखियां रे
वसन रेशमी,
रेशम तन पर
केश पाश
में बांध हिया रे ।
कितने
सौरभ सरस लुटाये
तब भी
खिली रही बगिया रे ।
पर अब
गात शिथिल हुई जावत
मधुघट
रीते जात पिया रे ।
पायल फूल
कंगन नही भावत
ना मेहेंदी
ना काजलिया रे ।
पूजा गृह
में नन्हे कान्हा
मन में
बस सुमिरन बंसिया रे ।
तुलसी
का एक छोटा बिरवा
एहि अब
रहत मोर बगिया रे
सेवा पहले
की याद करि के
रोष छोड
प्रिय करो दया रे ।
दिन तो
डूब रहा जीवन का
सांझ ढले,
फिर रात पिया रे ।
नही इस
पार जिया अब लागत
नैन लगे
उस पार पिया रे ।
यह
कविता कविवर्य (स्व.) भास्कर रामचंद्र तांबे जी की 'रिकामें मधुघट' ( खाली मधुघट) की संकल्पना पर आधारित है ।
आशा
है आपको पसंद आयेगी ।
यहां
से अब परसो दिल्ली जाना है , पहले लंबा सफर, फिर घर की साफ सफाई । वापस ढर्रे पर
लौटने तक शायद
ब्लॉग पर समय ना दे पाऊँ । आपका
स्नेह वापसी पर मिलता रहेगा इसी आशा के साथ ।
21 टिप्पणियां:
यमुना बैरिन क्यूँ हुई, मथुरा बसते श्याम ।
विरह वियोगिन बन पड़ी, छूटे काम तमाम ।।
नयन लगे उस पार, स्रवति मन झरि झरि गावत,
मन में हाहाकार, नहीं जग रोचत, भावत।
देह के अपने इस प्रांगण में
कितनी कीं अठखेली पिया रे
मधुघट भर भर के छलकाये
औ रतनार हुई अखियाँ रे ।
खन खन चूडी रही बाजती
छम छम छम छम पायलिया रे
हाथों मेहेंदी पांव महावर
काजल से काली अंखियां रे
वसन रेशमी, रेशम तन पर
केश पाश में बांध हिया रे ।
कितने सौरभ सरस लुटाये
तब भी खिली रही बगिया रे ।
पर अब गात शिथिल हुई जावत
मधुघट रीते जात पिया रे ।
पायल फूल कंगन नही भावत
ना मेहेंदी ना काजलिया रे ।
पूजा गृह में नन्हे कान्हा
मन में बस सुमिरन बंसिया रे ।
तुलसी का एक छोटा बिरवा
एहि अब रहत मोर बगिया रे
सेवा पहले की याद करि के
रोष छोड प्रिय करो दया रे ।
दिन तो डूब रहा जीवन का
सांझ ढले, फिर रात पिया रे ।
नही इस पार जिया अब लागत
नैन लगे उस पार पिया रे ।
बांसुरी की मधुर माधुरी सी रचना पढवाई है आपने .लौट लौट के आयेंगे रसास्वादन के लिए ,आयेंगे क्यों
नहीं .
वाह अद्भुत रचना लाजवाब
अरुन शर्मा
www.arunsblog.in
कविता में माधुर्य भाव के साथ अध्यात्म का पुट गहनता में वृद्धि कर रहा है -सुन्दर निरूपण .
- आपके लौटने की प्रतीक्षा रहेगी .
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत खूब ... यात्रा के लिए शुभकामनायें स्वीकार करें !
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाने सरबत दा भला - ब्लॉग बुलेटिन "आज गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व और कार्तिक पूर्णिमा है , आप सब को मेरी और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से गुरुपर्व की और कार्तिक पूर्णिमा की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और मंगलकामनाएँ !”आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत उम्दा उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,
resent post : तड़प,,,
नैहरवा हमका न भावे .....बहुत ही सुंदर उत्कृष्ट रचना ....शुभकामनायें ....!!
खूबसूरत रचना
वाह खूबसूरत रचना !
बहुत प्यारी रचना...
सादर
अनु
बहुत प्यारी रचना ....
आपके द्वारा लिखी गई हर पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत होती हैं....... आपकी समस्त रचनाओं को लिये आपको नमन .....
कृ्पा कर एक बार यहाँ भी आएं .....
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देह के अपने ------पायलिया रे |पंक्तिया बहुत अच्छी लगीं |
आशा
मधुर गीत सी ... लयबद्ध, प्रेम विरह ओर विविध रंगों को समेटे ... सुन्दर काव्य ...
दिन तो डूब रहा जीवन का
सांझ ढले, फिर रात पिया रे ।
नही इस पार जिया अब लागत
नैन लगे उस पार पिया रे ।
शब्दों और भावों का रुन-झुन प्रवाह।
बहुत शानदार रचना , आभार
आशा जी!...जीवन की कटु सच्चाई को आपने कितनी आसानी से शब्दों में ढाला!...प्रशंसा के लिए मेरे पास और शब्द नहीं है!
'पूजा गृह में नन्हे कान्हा मन में बस सुमिरन बंसिया रे । तुलसी का एक छोटा बिरवा एहि अब रहत मोर बगिया रे '
क्या खूब!
कविता बहुत सरस लगी.
दिल्ली प्रवास आनन्दमयी हो.
उम्मीद है ज़िंदगी ढर्रे पर लौट आयी होगी, कविता बेहद सुंदर है, मुझे बहुत अच्छी लगी
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