शनिवार, 22 नवंबर 2008

श्रध्दांजली


जैसे ही दिल्ली पहुँचे खबर मिली कि अण्णा की तबियत बहुत ज्यादा खराब है .
तुरत फुरत टिकिट कटवाकर जबलपूर गये । नलियाँ लगाकर बिस्तर पर लेटे भाई
को देखा तो दिल कचोट सा गया । पर उन्होंने सब को पहचान लिया ।
इतनी तकलीफ के बावजूद उनका पहेलियीँ बुझाने का स्वभाव वैसा ही था । शाम को
हम दोबारा मिलने अस्पताल गये तो मुझे और मिलिंद को देखकर एक सरगम गुनगुनाये
और कहा बताओ कौनसा राग है .। मैने कहा,” क्या अण्णा तुम भी किसे पूछ रहे हो “ तो
थोडा हँस कर चुप हो गये । उसी दिन उनके एक दोस्त मिलने आये और मजाक करने
लगे,” काले साब समोसा ले आऊँ” तो कहा ,”अरे तुम ले तो आओगे पर ये लोग मुझे खाने
नही देंगे, चुपके से ले आना बाद में” । उसके बाद तो ताकत जैसे हर दिन कम ही होती गई ।
और बोलना भी कम कम होकर सिर्फ दर्द के बारे में बात करने तक ही सीमित हो गया और
१९ नवंबर को सुबह साढेपांच बजे उन्हे इस पीडा से मुक्ति मिल गई । अण्णा और मै साथ साथ बडे हुए थे । खेलना लडाई झगडा क़ॉलेज जाना सब एक साथ आँखों के सामने से सरक गया । दूसरे दिन जबलपूर के अखबार में उनके लिये श्रध्दांजली छपी वही यहाँ दे रही हूं । और कुछ तो लिखा नही जा रहा ।

इसे दो बार क्लिक कर के पढें ।

13 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

अण्णाजी को हमारी भी श्रद्धांजलि.
http://mallar.wordpress.com

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मेरी संवेदनाएं आप के साथ है...दिवंगत की आत्मा की शान्ति के प्रार्थना करता हूँ.
नीरज

संगीता पुरी ने कहा…

अण्णाजी को हमारी भी श्रद्धांजलि!

ghughutibasuti ने कहा…

मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं । अण्णा जी को श्रंद्धाजली ।
घुघूती बासूती

विवेक सिंह ने कहा…

अण्णाजी को हमारी भी श्रद्धांजलि!
मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं .

mehek ने कहा…

anna ji ko hamari aur se hi shradhha suman arpit,bhagwan unki atma ko shanti de aur aapke parivar ko himmat.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं .

Anil Pusadkar ने कहा…

अण्णाजी को मेरी भी श्रद्धाँजलि.इश्वर आपको और आपके परिवार को इस दु;ख को सहने की शक्ति दे.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही अफ़सोस हुया अण्णा जी के बारे पढ कर, भगवान उन की आत्मा को शान्ति दे, ओर आप सब को इस दुख सहने की शक्ति दे, हमारी सब की तरफ़ से, अण्णाजी को श्रद्धांजलि!आप सब होसला रखे.

Udan Tashtari ने कहा…

काले साहब के निधन का समाचार सुनकर बहुत दुख हुआ. मैं काले साहब को बचपन से जानता हूँ क्यूँकि वह मेरे पिताजी के साथ साथ एम पी ई बी में कार्यरत थे और उनका हमारे घर हमेशा आना जाना था. मेरे पिता श्री पी के लाल उनके परिवारिक मित्र थे. धनन्जय और मकरन्द भी हमारे घर आया जाया करते थे.

काले साहब का हिन्दी गानों को अंग्रेजी में अनुवाद कर हिन्दी धुन में गाना हमेशा याद रहेगा.

मेरी ओर से श्रद्धांजलि!

मैं भी जबलपुर २० को आया.

आप कब तक जबलपुर में हैं? हो सके तो अपना नम्बर ईमेल करें.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

श्रद्धांजलि!

Asha Joglekar ने कहा…

आप सबका हमारे शोक में भागी होने का आभार ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

देर से इस दुखद समाचार को पढा है आशाजी -
मेरी हार्दिक श्रध्धाँजलि कुबुल करेँ अण्णाजी, हमेशा याद रहेँगेँ
- लावण्या