शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

अरे अरे अरे

आ गईं तुम
आना ही था तुम्हे
देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था,
आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी।
 वह भीगी हुई चने की दाल  और हरी मिर्च
जो तोते के लिये रखी थी तुमने,वह भी तो रखनी है
उसके पिंजरेमें।
और मंदिर में भगवानजी भी तो प्रतीक्षारत हैं तुम्हारी आरती के लिये।
और हाँ गैस पर दाल चावल का कुकर भी तो रखना है।
रस्सी पर टँगी साड़ी भी तो तहाकर रखनी है।
और मैं जो यहाँ बाँहें फैलाये खड़ा हूं तुम्हारे लिये
कि तुम आओ तो तुम्हें बाँहों में भर लूँ
अरे अरे यह क्या, अच्छा.......
अ रे   अरे   अरे....,

6 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मिलन के करीब के लम्हों को बखूबी उतारा है इन शब्दों में ...
इस अकुलाहट को शब्द दिए हैं ... बहुर खूब ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह सुंदर सार्थक सृजन

Prachi Digital Publication ने कहा…

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प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...

kya hai kaise ने कहा…

अति सुंदर लेख
Raksha Bandhan Shayari

बेनामी ने कहा…

क्या अभी भी है यह स्कीम ?