मेरी कविताएं नाचती हैं मेरे खयालों में।
घूमती हैं गोल गोल मेरे चारों और,
एक नई अनछुई कविता लेने लगती हा आकार
उनके बीचोंबीच।
जिसका हरियाली का लेहंगा, फूलों की चोली,
चांद सितारे टंकी झीनी झीनी चूनर,
उसके बादल से काजल काले गेसू।
उसके अलंकार, उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेष,
अपन्हुति, अन्योक्ति और जाने क्या क्या।
धीरे धीरे साफ होती जाती है उसकी आकृति मन दर्पण में
और मै उठा लेती हूँ कलम।
कविता, कविता का जन्म
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें