शनिवार, 28 जून 2014

बुढापे का सुख















बुढापे में भी सुख होता है।

सुख- किसी भी बात की जल्दी ना होने का,

सुख- कोई जिम्मेवारी ना होने का,

सुख- दोपहर में किताब लेकर लेट पाने का,

सुख- नाती पोतों को प्रति-दिन बडा होते देखने का,

सुख- नातेरिश्ते में गप्पे लगा पाने का,

सुख- दोस्तों से लंबी बातें कर पाने का,

सुख छुट्टी ही छुट्टी होने का,

सुख सिर्फ ३० से ५० प्रतिशत किराये में इधर उधर घूम पाने का,

सुख- फटी बिवाइयों में घंटों मरहम मलने का,

बुढापे में भी सुख होता है, सिर्फ उसे मजे लेकर भोगना आना चाहिये।



चित्र गूगल से साभार



14 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

जाके पैर ना फटी बैवाई वो का जाने खुशी पराई होना चाहिये तब तो । हा हा इंतजार है ऐसे बुढ़ापे का ।

Vaanbhatt ने कहा…

बचपन और बुढ़ापे में यही फर्क है...मौज तब भी थी बिना जिम्मेवारी के...पर बुढ़ापा आते-आते ये पता चल जाता है कि किन-किन जिम्मेवारियों से मुक्त हुये...इसलिए मज़ा बढ़ जाता है...और ये बुजुर्गों का हक़ भी है...इसीलिए सरकार उन्हें उचित सम्मान देती है...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

उम्र के छठे दशक के लगभग बीचोंबीच पहुँच चुका हूँ. अभी तक बूढा महसूस नहीं करता. जब बूढा हो जाऊँगा तब देखूँगा यह सारे सुख अपने नसीब में हैं या नहीं!

Kailash Sharma ने कहा…

बिल्कुल सच...सुख एक मानसिक स्तिथि है और यह हम पर निर्भर है कि हम कैसे खुश रहते हैं..

Suman ने कहा…

सारी जिम्मेदारियों से मुक्त बुढ़ापा उत्सवमय विश्राम है,निर्भर है हमपर हम इसे किस प्रकार लेते है चाहो तो उत्सव बनाये चाहो तो विषाद मनाये वैसे शरीर मजबूर है देर सवेर बूढ़ा होता है लेकिन मन कभी बूढ़ा नहीं होता !आनंद मनायें, इस अवस्था को भी मन से स्वीकार करे ! बहुत अच्छी लगी ताई पोस्ट !

Archana Chaoji ने कहा…

सुख - सबको नसीब नहीं बुढ़ापे का सुख .......

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

बुढापे के सुख की सार्थक परिभाषा। आशा है ऐसा सुख सभी के हिस्से में आए।

Satish Saxena ने कहा…

वाह , क्या बात कही है आपने ! आभार आपका

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सुख और दुःख तो हर अवस्था मिएँ होते हैं ... जरूरत उन्हें देखने की होती है ... आपकी पारखी नजार आनद ही देने वाली है ...

dr.mahendrag ने कहा…

सोचो , महसूस करो तो सुख कभी भी मिल जाता है उसके लिए बुढ़ापे का इन्तजार क्यों करें ? बुढ़ापे के साथ अक्सर बीमारियां भी आती हैं तब सुख जगह दुःख आ जाता है कभी घुटने को सँभालने का , कभी नादान दिल के हड़ताल कर देने का कभी संतान के निकम्मे पन का तो कभी अर्थसंकट ,का और भी न जाने कितने दुःख इसलिए जवानी में काम के ही साथ ही सुख महसूस कर ले ये ही बड़ा सुख है

Harminder Singh Chahal ने कहा…

बुढ़ापा ऐसा ही है...

hempandey ने कहा…

कवि कहता है - न चिर सुख मिले न चिर दुख ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कितने सारे सुख हैं बुढापे के ... बहुत बढ़िया

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

उम्र कोई भी हो, सुख हमारे आस-पास ही रहते हैं, बस, उसे पहचान कर अपना दोस्त बना लेना श्रेयस्कर है।

सूक्तियों के रूप में अच्छा संदेश।